➤ हिमाचल सरकार जमीन सेटलमेंट के लिए अपनाएगी केरल का सैटेलाइट मॉडल
➤ रोवर मशीन से बनेगा सटीक डिजिटल नक्शा, खत्म होंगे विवाद
➤ मनाली में अक्टूबर-नवंबर में होगा राज्यों का बड़ा कॉन्क्लेव
शिमला। प्रदेश में जमीन की सेटलमेंट प्रक्रिया अब आधुनिक तकनीक से जुड़ने जा रही है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने फैसला लिया है कि वह भूमि के सीमांकन और रिकॉर्ड बनाने के लिए केरल का सैटेलाइट आधारित मॉडल अपनाएगी। अब तक प्रदेश में जमीन की पैमाइश के लिए जरेब का प्रयोग होता था, जिसमें अक्सर विवाद खड़े हो जाते थे और रिकॉर्ड बनाने में 5 से 7 साल का लंबा समय लग जाता था।
राजस्व विभाग की मानें तो हिमाचल में जमीन की सेटलमेंट हर 40 साल बाद होती है और पारंपरिक तरीके से इसका रिकॉर्ड तैयार करने में ही वर्षों लग जाते हैं। इस बीच कई बार लोगों के बीच सीमा को लेकर झगड़े पैदा हो जाते हैं, जिनके निपटारे में अधिकारियों का अधिक समय व्यर्थ होता है।
इस समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार ने रोवर मशीन के जरिए जमीन की सेटलमेंट कराने का निर्णय लिया है। यह मशीन जमीन के चारों कोनों पर रखी रिफ्लेक्टर रॉड से सिग्नल प्राप्त करती है और पूरे भूखंड का एक डिजिटल नक्शा तैयार करती है। इसमें खसरा नंबर, गांव-शहर का नाम और अन्य जरूरी जानकारी दर्ज की जाती है। इस प्रक्रिया से जमीन का सीमांकन पूरी तरह सटीक और विवादरहित हो जाएगा।
प्रदेश सरकार इस मॉडल का विस्तृत अध्ययन कर रही है और इसी कड़ी में मनाली में अक्तूबर-नवंबर में एक बड़ा कॉन्क्लेव आयोजित किया जाएगा। इसमें केरल, हरियाणा, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों के राजस्व अधिकारी हिस्सा लेंगे। राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि रोवर मशीन के आने से प्रदेश में भूमि विवादों में भारी कमी आएगी और सेटलमेंट की प्रक्रिया तेज, सटीक और पारदर्शी होगी।
गौरतलब है कि सिरमौर जिले में सैटेलाइट मॉडल से सेटलमेंट की पहल पहले भी की गई थी, लेकिन वह योजना पूरी तरह से सफल नहीं हो पाई थी। अब इस बार सरकार इसे गंभीरता से लागू करने जा रही है।



